(बाल कविता)
दाँत कटाकट बोल रहे
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ठंडी पड़ी कड़ाके की
कुतिया मर गई बांके की
शेर बना भीगी बिल्ली
कांप रही पूरी दिल्ली
किले कांपते थर थर थर
सड़क कांपती नाके की ।
सिंहासन भी डोल रहा
राजमहल भी बोल रहा
गरम रजाई लेकर आओ
हालत बिगड़ी पाले की ।
नदिया बर्फ बनी जमकर
मछली कांप रही थर थर
मफलर स्वेटर टोपी लाओ
कहती मकड़ी जाले की ।
दाँत कटाकट बोल रहे
सूर्य देव मुंह मोड़ रहे
बादल कोट पैंट पहने
सोचे आग जलाने की।
सागर ओढ़ रहा कम्बल
हीटर ताप रहा दलदल
तारे दुबके हैं घर में
सांस रुकी सन्नाटे की।
ओस बूंद भी हैं सिमटी
घास फूस से है लिपटी
कोहरे ने ढाया कहर बहुत
बिगड़ी हवा इलाके की ।
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~ राम नरेश 'उज्ज्वल'

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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