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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

भैया की याद

कहानी


भैया की याद

राम नरेश ‘उज्‍ज्‍वल'

गुड़िया सुबह-सुबह उठी। नहा-धोकर तैयार हो गयी। आज उसने लहँगा-चुन्‍नी पहना था। उसके भैया कुछ दिन पहले ही लाये थे। वह हर साल की तरह इस साल भी थाल सजाने लगी। उसमें मिठाई रखी, चन्‍दन-रोली रखा और एक मोतियों वाली राखी रखी।

वह थाल लेकर कमरे में गयी। वहाँ उसके भैया की फोटो टँगी थी। वह उसे देखने लगी। देखते-देखते वह यादों में खो गयी। उसे उस दिन की याद आने लगी, जब उसके भैया राम और रहीम वापस जा रहे थे। रहीम राम का पक्‍का दोस्‍त था। वह अक्‍सर खेलने के लिए गुड़िया और राम के पास चला आता था। वह अपने माँ-बाप का इकलौता लड़का था। राम और गुड़िया को जान से भी ज्‍यादा चाहता था।

फौज में भर्ती हुए अभी कुछ ही दिन हुए थे, कि लड़ाई छिड़ गयी। राम और रहीम सीमा पर चले गये। अभी कुछ दिन पहले ही चिट्‌ठी आई थी। उसमें लिखा था- “मैं राखी के पहले ही आ जाऊँगा।”

चिट्‌ठी पढ़कर गुड़िया बहुत खुश हुई थी। माँ और बाप को भी सुनाया था। सब लोग बहुत खुश हुए थे। पर तीसरे दिन ही वह खुद आ गया। उसकी लाश तिरंगे में लिपटी थी। पूरा गाँव उमड़ पड़ा था राम को देखने। क्‍या बच्‍चे, क्‍या जवान ? औरतों और बूढ़ों का ताँता लगा था। सेना के जवानों ने उसे श्रद्धांजलि दी थी, बिगुल बजा था। बड़े-बड़े अफसरों ने सैल्‍यूट किया था।

आज गुड़िया थाल सजाये अपने भाई के सामने खड़ी पूछ रही थी - “भैया, तुम तो कहते थे, मैं तुझे छोड़कर कभी नहीं जाऊँगा। सदा तेरे साथ रहूँगा। लेकिन आज मैं अकेली रह गयी। तुम तो देश पर शहीद हो गये। पर आज मैं राखी का त्‍योहार कैसे मनाऊँ ?” इतना कह कर वह रोने लगी। सिसकते-सिसकते फिर बोली - “भैया, मैं तुम्‍हारे बिना कैसे रहूँ ? पूरे घर में सन्‍नाटा छाया हुआ है। माँ-बाप चुपकेे-चुपके रोते हैं। मैं भी अकेले में रो लेती हूँ। पर सबके सामने कभी आँसू नहीं बहाये। आखिर मैं एक बहादुर भाई की बहन हूँ। अगर मैं रोती तो सब लोग क्‍या कहते, कि भाई हँसते-हँसते शहीद हो गया और बहन आँसू बहा रही है। लेकिन भैया सच बतलाऊँ, आज मुझे तुम्‍हारी बहुत याद आ रही है। मेरा मन तुमसे मिलने को कर रहा है।”

“किससे बातें कर रही है ?” रहीम ने पूछा और बैसाखियाँ टेकते हुए अन्‍दर चला आया। गुड़िया उसे देखते ही फूट-फूट कर रोने लगी। रहीम ने समझाते हुए कहा - “देख, तेरा भाई देश के काम आ गया। वह बड़ा भाग्‍यशाली था। मैं ही एक अभागा हूँ, जो सिर्फ अपना पैर ही भारत माँ को भेंट चढ़ा सका।”

गुड़िया रहीम को पकड़कर और जोर-जोर से रोने लगी। रहीम ने फिर कहा - “तू ही तो कहती थी कि तेरे भैया बड़े बहादुर हैं। दुश्‍मनों के छक्‍के छुड़ा देंगे और आज तू ही रो रही है। तेरे भैया क्‍या सोचते होंगे, कि जिस बहन को वो बहादुर समझते थे, वो कमजोर निकली।”

गुड़िया फिर सिसकते हुए बोली - “लेकिन भैया ये तो बतलाओ, मैं इस राखी का क्‍या करूँ, किसे बाँधूँ ?”

रहीम उसकी बात सुनकर हल्‍की मुस्‍कान के साथ बोला- “पगली... भैया कहती है और पूछ रही है, कि राखी किसे बाँधूँ ? क्‍या मैं तेरा भाई नहीं हूँ। क्‍या सगा भाई ही भाई होता है ?”

गुड़िया यह सुनकर चौंक पड़ी। उसने सोचा ‘रहीम तो मुसलमान है।' वह राम की ओर देखने लगी। तभी उसके कानों में राम की आवाज पड़ी - “इंसान-इंसान होता है, हिन्‍दू या मुसलमान नहीं।”

गुड़िया को लगा, जैसे वह बहुत बड़ी भूल करने जा रही थी। उसने फिर रहीम की ओर देखा। उसे रहीम की जगह राम नजर आने लगा। उसे लगा जैसे उसके भैया वापस आ गये। उसने रहीम के माथे पर तिलक लगाकर आरती उतारी और हाथ में राखी बाँध दी।

राम यह सब देख कर तस्‍वीर में ही मुस्‍करा रहा था। उसकी माँ और बापू भी दरवाजे से यह सब देख रहे थे। गुड़िया रहीम को मिठाई खिला कर उपहार माँगने लगी। जैसे राम से माँगती थी। उसके चेहरे पर मुस्‍कान लौट आई थी।




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