कापीराइट गजल
मेरी जिन्दगी में कहीं ऐसा ना हो जाए
मैं देखता ही रहूं तुझे और दिल खो जाए
न जाने कैसा जादू तेरी इन आंखों में है
जो देख ले एक बार तुझे वो तेरा हो जाए
मैं पीछे चलता हूं तुम्हारे रोज साये की तरह
कहीं ये साया तेरे तन से जुदा ना हो जाए
यही सोच कर के हम डर रहे थे अब तक
कहीं दिल ये मेरा अब पराया ना हो जाए
गुस्ताखियां जो कभी की थी इन आंखों ने
अब ये इल्ज़ाम कहीं दिल पर ना आ जाए
तुझे छोड़ के जाना मुमकिन नहीं है अब
चाहे धड़कन ये दिल की कहीं गुम हो जाए
ये भी मंजूर है हम को अब इश्क में तेरे
खता जो आंखों ने की है सजा हमें हो जाए
हमने कोशिश बहुत की है, तुमको पाने की
जो हुआ नहीं है अब तक वो भी हो जाए
देखना न कभी तुम इस दिल के जख्मों को
गर कोई जख्म मेरे दिल का हरा हो जाए
इस मंजिल पर ये रौशनी कैसी है यादव
अन्धेरी रात में भी जैसे यूं सवेरा हो जाए
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है