देखा जो हर रोज, दुनिया के चेहरे को बड़ी गौर से..।
बमुश्किल संभाला है, खुद को फिर बदलते हुए दौर से..
दमकता है महताब, आफताब की रोशनी से..
चांद की ये फितरत, छुपी हुई है चकोर से..।
हर रोज करता हूं गुफ्तगू, खुद के ख्यालों से..
दिल का फसाना, कैसे कहूं किसी और से..।
हर रोज नए किस्से–कहानी, बुनता है वक्त भी..
हम ज़िंदगी का सिरा, पकड़ें भी तो किस ओर से..।
मै तो वक्त के मुआफ़िक, ढलता रहा हूं दोस्तो..
मगर अब घबरा गया हूं, तमन्नाओं के शोर से..
पवन कुमार "क्षितिज"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




