ये है जलने वालों का शहर मोहब्बत समझेगा कैसे।
बस चलेगा नही इनका रहनुमाई कोई बनेगा कैसे।।
किनारे कीचड़ भरे औए सैलाब का खतरा दिखता।
कच्चे मकानों में रहने वाला मेरा घर बचाएगा कैसे।।
शिकायत करना लाजमी नही रास्ता खुद निकालो।
क़ाबिलियत से मोहब्बत की मुँह की खाएगा कैसे।।
दूर हो जा इन नजरों से जरूरत पर ना काम आते।
बेवजह सताना काम इनका यों राहत पाएगा कैसे।।
तरह-तरह के सवाल जिनके उत्तर ही नही 'उपदेश'।
उलझाने में माहिर बहुत इनको समझाएगा कैसे।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद