सुना है लुटा है वतन को गैरों ने बहुत
अपनों ने किया क्या शोर किया बहुत
वो जिनके पुरखे घर की चार दीवारी
में रहे कैद, आज उन्होंने शोर किया बहुत
कटते रहे काटते रहे थे जो शूरवीर थे बहुत
और सियारों ने आज तक शोर किया बहुत
घर भरते रहे कभी अपना कभी दोस्तों का
वतन परस्ती पे जिन्होंने शोर किया बहुत
लूट अस्मतों की होती रही गलियों चौराहों पर
क्या किया शहर ने और बस शोर किया बहुत
उसे पता था इनाम सच बोलने का गोलियां खाई
हाथ जोड़ कर, लोगो ने बस शोर किया बहुत
जिनकों आना था काम वतन के आते रहें
और जिन्हें बचना था उन्होंने शोर किया बहुत

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




