देखनी हो जिंदगी तो एक सी गरीब की गली आ जाना।
उसकी खुली खिड़की पे आना ध्यान बटा जाना।
एक अजीब सी शांति मिलेगी
ना शोर ना शराबा
अर्द्ध नग्न बच्चें
फटे हाल महिलाएं
कराहती हुई सिर्फ आवाज़ मिलेगी।
जिंदगी की हकीकत पता लग जायेगी
सिर्फ चंद मिनटों में ।
तब अकड़ तुम्हारी ढीली पड़ जायेगी।
ना बिजली न बत्ती
शाम होते ही अंधेरगर्दी।
कुपोषित बच्चें
शोषित महिलाएं।
उनकी दशा दिशा तुम्हें अंदर तक हिला जाएं।
गरीब क्या खाए क्या बचाए।
गरीबी कोई अभिशाप नहीं है
कोई भी गरीब के साथ नहीं है।
एक नलका सौ सौ मटके
अपने बारी को बारी बारी सब तरसे
बद्र भी गरीब के आंगन ना बरसे
अजीब हालात हैं।
मर रहें जज़्बात हैं।
अजीब दास्तान हैं
सिर्फ जल रहे शमशान हैं..
पीस रहे आम इंसान हैं....
सब ओर शमशान हैं..
ना इंसा ना मकाम है..
सिर्फ समस्या
ना कोई समाधान
बस सब के सब परेशान हीं परेशान हैं।
उफ तक नहीं करतें
ऐसी हालातों में भी जी लेते हैं।
नमक रोटी खातें हैं और खुश मिजाज़ रहतें हैं...
शायद इसी को जिंदगी कहतें हैं...
शायद इसी को बंदगी कहते हैं...
शायद इसी को जिंदगी कहते हैं..

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




