कभी गीत में कभी गज़ल में,
कभी यादों की टूटी महल में,
कभी तन्हाई, कभी कोलाहल में,
ढूँढा तुम्हें जिंदगी के हर पल में।
मृग ढूँढता कस्तूरी जैसे जंगल में,
जैसे मकरंद ढूँढता पराग कमल में,
प्यासा ढूँढ रहा जीवन जैसे जल में,
वैसे ढूँढा तुम्हें जिंदगी के हर पल में।
🖊️सुभाष कुमार यादव