बेगुनाहों पर चली गोलियां
शिवानी जैन एडवोकेटByss
धुंधली सुबह का हल्का उजाला था,
चिड़ियों का चहचहाना, हवा में रवानी थी।
मासूम आँखों में कल के सपने पल रहे थे,
अनजान थे वो, आने वाली कहानी से।
अचानक घुली हवा में बारूद की गंध,
चीखें उठीं, और मची भगदड़ हर ओर।
किसने ये ज़हर घोला, किसका था ये वार?
बेगुनाहों के लहू से रंग गई धरती की कोर।
खिलौने छूटे, किताबें गिरीं, अधूरे रह गए खेल,
माँ की ममता, पिता का सहारा, सब पल में हुआ धुआँ।
किस अपराध की सज़ा मिली इन नादानों को?
क्यों बेरहमी से छीनी गई उनकी जान?
सवाल ये उठता है, हर एक ज़मीर से,
कब तक ये सिलसिला यूँ ही चलता रहेगा?
कब थमेगी ये नफ़रत की आँधी, ये लहू का खेल?
कब बेगुनाहों की आहें आसमान में गूंजना बंद करेंगी?
आज लहू बहा है, कल इंसाफ़ जागेगा,
हर क़तरा लहू का एक सवाल बन जाएगा।
दोषियों को मिलेगी सज़ा, ये वादा है वक़्त का,
बेगुनाहों की कुर्बानी, यूँ बेकार न जाएगा।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




