कापीराइट गजल
ये तेरा रिश्ता मुझ से कितना अजीब है
हर पल लगा मुझे, कि मंजिल करीब है
वैसे तो हमारे बीच हैं अब दूरियां बहुत
मगर दिल से दिल का रिश्ता अजीब है
पास आने की कोशिश, बहुत की हमने
मिल जाऊं तुझे कहीं कहां ये नसीब है
मिलना बिछङना तो है, उसके हाथ में
मिलके भी ना मिले, ये कैसा नसीब है
न, जाने कब से बैठा हूं, तेरे इंतजार में
ये, आशा का समंदर, दिल के करीब है
उठ रही हैं ये लहरें समंदर में बार-बार
साहिल से ही टकराना इन का नसीब है
कब तक तेरे लिए धङकता रहेगा दिल
दिल को नहीं कोई, तुझ सा अजीज है
सिर्फ, चाहने से तो कुछ होता नहीं यादव
मिले तो अच्छा, न मिले तो खोटा नसीब है
- लेखराम यादव
(मौलिक रचना)
सर्वाधिकार अधीन है