शादी, जो कभी आत्माओं का संगम थी,
आज बन गई है एक मोल-भाव की प्रथा।
जहां रिश्ते निखरते थे विश्वास के रंग में,
अब दबे लहजों में सौदे तय होते हैं सभा।
दूल्हा नहीं, जैसे एक वस्तु हो बाजार की,
मूल्यांकन होता है उसकी तनख्वाह का।
क्या कमाता है, कहां रहता है,
शादी के मंडप पर तोल होता है हर चाह का।
दुल्हन से सवाल है उसकी सुंदरता का,
गोरी हो, पतली हो, कम बोलने वाली हो।
पढ़ाई भी हो, लेकिन इतनी नहीं,
कि उसकी आवाज़ समाज को चुभने वाली हो।
घरवालों के बीच समझौते होते हैं,
"हम देंगे इतना, आप इतना लाएंगे।"
दहेज के नाम पर चलती है गुप्त भाषा,
जहां रिश्तों का मोल कागजों पर लिखाएंगे।
क्या यह शादी, प्रेम का प्रतीक है?
या समाज की प्रथा का बस एक बोझ?
जहां हंसी के पीछे छिपी है घुटन,
और रिश्तों में तैरती है छल की धार।
क्या सच में शादी जरूरी है?
जब रिश्तों का आधार सिर्फ धन हो?
जब दुल्हन की आवाज़ दबा दी जाए,
और दूल्हे की कीमत गिनी जाए।
रिश्ते, जो दिल के करीब होते थे,
अब बन गए हैं व्यापार की तरह।
जहां प्यार की जगह ले ली है स्वार्थ ने,
और संस्कार की जगह चलती है मुनाफ़ा।
शादी का मतलब खो चुका है,
वो अब सिर्फ जिम्मेदारी बन गया है।
सपनों का दमन, आज़ादी की बलि,
क्या यही जीवन का आधार बन गया है?
सोचो, क्या यह सच में जीवनसाथी का चयन है?
या समाज की बनाई हुई एक मजबूरी है?
क्या यह रिश्ता टिकेगा वहां,
जहां प्रेम नहीं, केवल औपचारिकता हो?
शादी तभी सार्थक होगी,
जब यह दो आत्माओं का मेल हो।
जहां प्यार की भाषा बोले रिश्ते,
और दिल से दिल का संवाद हो।
हमें इस समाज का आईना बदलना होगा,
जहां रिश्ते व्यापार नहीं, बंधन बनें।
जहां शादी हो खुशी का प्रतीक,
ना कि दहेज और दिखावे का खेल।
- शारदा गुप्ता

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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