टूट-फुट कर हो गया है ये खंडहर,
वीरान लगता, मेरे अंदर का शहर।
रौनक-ए-बहार थी तुम्हारे साथ में,
बिना तुम्हारे, उदास है शामोसहर।
तुमने छू कर, कर दिया था जिंदा,
अब हो गया हूँ एक बेजान पत्थर।
आसान नहीं है लिखना अपना दर्द,
आँखों से आँसू कलम में उतारकर।
दर्द, तन्हाई और याद बैठते हैं साथ,
शायरी और जाम छलकते रातभर।
घर की उम्मीदें पूरा करने निकला,
नाकाम हो कैसे लौटूँ मैं अपने घर।
ये मशवरा सुन लो मेरी, आशिकों,
मत चाहना, किसी को भी, टूटकर।
🖊️सुभाष कुमार यादव

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




