यूँ तो हम बेटी दिवस मना रहें हैं
मगर उसे महफ़ूज़ नहीं रख पा रहें हैं
हौसला बढ़ाते हैं आसमान छूने की
मगर पंख न कतर दे कोई घबरा रहें हैं
हम सोये रहते हैं एसी, कूलर में मगर
बेटियों की फ़िक्र में पसीने आ रहें हैं
असामाजिक तत्वों की कुदृष्टि न पड़ जाए
सलामती के लिए दुआ में हांँथ उठा रहें हैं
अब भी कोई क़वायद काम नहीं आ रहा
हम सिर्फ मोमबत्तियांँ जला रहें हैं