प्रेम से बढ़ कर है दोस्ती,
दोस्ती की बुनियाद,
टिकी है विश्वास पर,
जो है अचल, अडिग, स्थिर।
सच्चा दोस्त कभी साथ नहीं छोड़ता,
छोटी-मोटी बातों पर,
ज़रा सी शिकायतों पर,
कभी न होने वाली मुलाकातों पर,
अरसे बाद भी जब मिलते हैं,
या बात होती है फ़ोन पर,
गिले-शिकवे सब दूर,
दोस्ती फिर से पुनर्नवा हो जाती है।
पर प्रेम विश्वास से ज्यादा,
एकाधिकार चाहता है,
प्रेम में विस्तार से ज्यादा संकुचन है।
देखा है कईं बार टूटते प्रेम को,
छोटी-मोटी बातों पर,
राई सी शिकायतों पर,
न होने वाली मुलाकातों पर।
अलग होने पर,
एक-दूसरे से मुँह मोड़ लेते हैं,
कभी देखते नहीं पलट कर।
किंतु जो प्रेमी मित्र होते हैं,
उनका प्रेम जीवन पर्यंत,
पूर्ण विश्वास पर टिका रहता है।
🖊️सुभाष कुमार यादव