धर्म की रक्षा खातिर,
मैं ही करता युद्ध रहा,
सत्य सनातन संत भाव सम,
मैं ही नित्य शुद्ध रहा,
तज कर सकल अभिमान,
सदा शांति स्थापना का प्रबुद्ध रहा,
मानवता की स्थापना हेतु,
दोषों सहित मैं विशुद्ध रहा,
होने लगा नाश मानवीय मूल्यों का,
मैं ही बन, काल का क्रुद्ध रहा।
न आदि, न अंत, मैं ही शाश्वत-अनंत,
मैं ही निकट तुम्हारे, सदा प्रतिबुद्ध रहा।
हर युग में दिया सीख मानव को,
मैं ही बनकर राम, कृष्ण, बुद्ध... रहा।
🖊️सुभाष कुमार यादव