फ़क़त मैं ही नहीं उसका दीवाना था,
इस मर्ज से परेशाँ सारा जमाना था।
वो जिसे देखे, वो डूब जाए नशे में,
उसकी आँखों में समाया मैख़ाना था।
हुस्न ऐसा जैसे हो जलती हुई शमा,
मिटने को तैयार हरेक परवाना था।
ख़ुदा जाने किससे थी उसे मुहब्बत,
हर रोज़ रकीबों का आना-जाना था।
🖊️सुभाष कुमार यादव