दिल से हलक तक, हलक से होंठों तक
लफ़्ज़ों ने,न जाने, कितने समंदर पार किए
चाहत की जिद ने, मुहब्बत को हासिल करने
नफरतें के,न जाने, कितने दरिया पार किए
घुट घुट कर जीना, जी जी कर घुटना
स्वयं ही, स्वयं की , सांसें तार तार किए
कभी अपने पराये लगे, कभी पराये अपने लगे
उम्मीद कायम रही,बस, हमने इंतजार किए।
सर्वाधिकार अधीन है