देखा दुनियां के मेले में
यहां हर शख़्स अकेला था।
रिश्तों की यहां भीड़ थी
पर उसमें भी हर कोई
तन्हा अकेला था।
यहां हर चीज़ बिक रही थी
सब की बोली लग रही थी
जो दे सका कीमत
उसका हर कोई रखवाला था।
वरना रिश्तों के भंवर में
निकल रहा सबका दिवाला था।
आसान नहीं था अपने पद पे
बने रहना
यहां सबको अपनी कुर्सी बचानी थी
पिता बने रहने के लिए घर चलाना
तो बीबी बने रहने के लिए अपना सबकुछ
लुटाना था।
अच्छा पुत बने रहने के लिए अच्छे पैसे वाला तो संस्कार पुत्री बने रहने के लिए
ज़रूरी था।
सबको अपनी चिंता थी
सब अकेले हीरो थे
पर सामूहिक जीरो थे।
बस रिश्ते सारे ताने बाने में उलझे
सुलझाए नहीं किसी की सुलझे
सबने सबको सिर्फ़ मकड़ जाल में
फसाया था।
दरअसल किसी को किसी की
ज़रा सी भी फिकर नहीं है यहां
यहां सिर्फ़ रिश्तों की मोह माया ने
सबको सबसे मिलवाया था।
सबको सबका कहलवाया था।
बाकि क्या है इस मेले में
हर शख्स ने अपना इंस्टॉल लगाया था
सबकुछ बिकाऊ है यहां...
तो फिर ना जाने किस किस ने
किस किस को क्या क्या ना बेचा था
जिंदगी के मेले में हर सख्श अकेला था
सबको अपने लाभ की चिंता तो
सबको अपना मुनाफा दिखता था
देखा दुनियां के मेले में
यहां हर शख़्स अकेला था..
यहां हर शख़्स अकेला था..