अपने नीड़ को जा रहे शाम को पंछी,
कभी एक के ऊपर एक उड़ रहे
तो कभी नाग से लहरा रहे पंछी।
अठखेलियां उनकी मन को छू रही,
इस उदासी शाम में मुस्कान दे रहे पंछी।
एक सुर में सजी मधुर ध्वनि कर्णप्रिय लग रही,
लग रहा है जैसे कोई गीत गा रहे पंछी।
ये गीत, ये अठखेलियां देख लग रहा कुछ ऐसा,
मानो किसी को कोई सीख दे रहे पंछी।
पॅंखों को फड़फड़ाना, फिर रुक जाना,
मानो बुरे हालात में जीने का तरीका बता रहे पंछी।
🖋️ रीना कुमारी प्रजापत 🖋️