पथ भिन्न भिन्न उद्देश्य एक अपनाने वाले।
कुछ सीमा पर कुछ राज भवन जाने वाले।।
प्रचारतंत्र के युग में झूठ पर झूठ परोस रहे।
कमजोर कर रहे सैना पर व्यंग्य करने वाले।।
नही चाहते अमन मन में राम बगल में छुरी।
जहरीले भाषण से जनता को लड़वाने वाले।।
खुली छूट कहने वालों ने बांधे हाथ जवानों के।
ऑपरेशन सिंदूर चलाते सिंदूर मिटाने वाले।।
साजिश की बदबू आती कारनामों में 'उपदेश'।
खुद पेंशन लेते सैनिक की पेंशन खाने वाले।।
किस लीला युग में आ पहुँचे शब्दों में विकास।
कैसे कानून बनाते राज भवन में बैठने वाले।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद