पांव से खिसकी हुई जब भी जमीं लगती है
जिन्दगी जितनी भी हो मगर कमी लगती है
वक्त के सामने आदमी मजबूर है बहुत जादा
चाहे जितना भी हंसो आंखों में नमी लगती है
उसके दर से ना यहां तो खाली कोई जायेगा
अपने घर में या बाहर उसकी खुशी लगती है
जब खुदा हमको दिया करता है कोई तोहफा
तब तो हर मांगी हुई मन्नत भी हसीं लगती है
कोई दोजख है ना कोई जन्नत है यहां पे दास
जिन्दगी ए लाचारगी दोज़ख की जमीं लगती है ।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




