मैंने तुझे प्रेम नहीं किया —
मैंने तुझे समझा।
जैसे सूखी नदी भी जानती है
कि एक दिन फिर से पानी आएगा,
जैसे धूप जानती है
कि छाँव की छुअन में भी उसकी ही आग पिघल रही है…
वैसे ही मैंने तुझे पढ़ा —
तेरे उस पृष्ठ को
जो तूने कभी किसी को दिखाया नहीं।
तू जब सबसे हँस रहा होता था,
मैंने तेरी आँखों में
अधूरी नींद देखी थी।
तू जब मुझे देखकर भी कुछ नहीं कहता,
मैंने तेरे भीतर उठती एक साँस सुनी थी —
जो बस इतना चाहती थी कि मैं ठहर जाऊँ।
प्रेम —
तेरा नाम नहीं लेता,
तेरे होने का शोर नहीं करता,
तेरे लिए लड़ता नहीं,
तेरे साथ जीतने की लालसा नहीं रखता…
प्रेम —
बस एक मौन में
तुझे समझ लेता है।
तू जब दूर गया,
मैंने तेरा हाथ नहीं खींचा…
क्योंकि मैंने जाना —
तेरा जाना भी एक संवाद है।
और प्रेम —
हर संवाद को पकड़ता नहीं,
बस…
हर भावना को समझ लेता है।
मैंने प्रेम को
तेरी उपस्थिति में नहीं,
तेरे अभाव में पहचाना।
और समझा —
कि प्रेम, वो नहीं जो साथ माँगता है…
प्रेम वो है,
जो समझता है कि तू क्या माँग नहीं पा रहा।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




