चाहतो का घेरा ही कितना छोटा हो गया।
कई बाहर निकल गईं दिल रोता रह गया।।
रौनक चेहरे की बताती थी हाल दिल का।
एक सवाल उठता बैठता सोचता रह गया।।
जो मिला जितना मिला कुबूल दिल को।
ख्वाहिशे दिन रात उसकी करता रह गया।।
कुछ वक्त से बाते खुद से करने में महफ़ूज़।
ऐसे हालातों में बस याद करता रह गया।।
जिसने अफवाह समझी रहा मंझधार में।
जिन्दा रहने को धार से लड़ता रह गया।।
मदद हर कोई चाहता ख्यालो में 'उपदेश'।
मगर घमंड के थपेड़ों से डरता रह गया।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद