यथार्थ है यह प्रेम या कोरी कल्पना मेरे
मन की...
स्मरण भर से प्रीतम का मेरा हृदय ब्यथित हो जाता है।
स्मृतियाँ जब आती है प्रेम की हृदय द्रवित हो जाता है।
प्रत्येक दिशा में,
खोजती है मीत को मेरी आँखें अश्रु बिन...
मृग तृष्णा सी,
रहती है मेरे हृदय की स्थिति प्रतिदिन...
यथार्थ है यह प्रेम या कोरी कल्पना मेरे
मन की...
क्या सूचित कर दू मैं उनको व्याकुलपन अपने मन का।
फिर सोचता हूं कही दूषित ना हो जाये संबध मित्र का।
हँसी का पात्र ना बन जाऊं कहीं इस जीवन की यात्रा में...
मीठा भी विष बन जाता है बहुत अधिक
मात्रा में...
यथार्थ है यह प्रेम या कोरी कल्पना मेरे
मन की...
बाल्यकाल से संग रह रहे है हम उनके।
फिर भी समझ ना पाये भाव हम दिलके।
एक तरफी है यह प्रेम की वर्षा...
उधर पड़ा है हृदय में प्रीत का सूखा...
यथार्थ है यह प्रेम या कोरी कल्पना मेरे
मन की...
प्रीतम के हृदय के भाव का हम पता
कैसे लगाये?
मेरे इतना सकुचाने से कही दूर ना वह
हो जाये?
यह प्रीत कहीं भ्रम ना हो बस मेरे मन का...
उसका स्वप्न ना हो कहीं दूसरे जीवन का...
यथार्थ है यह प्रेम या कोरी कल्पना मेरे
मन की...।
ताज मोहम्मद
लखनऊ

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




