नजरों में थे कभी
वो नज़रों से गिर गए
झूठे रंगत थी उनकी
वक्त के साथ बह गए।
जो बनते थे हमराही
वो कब के साथ छुड़ा
लिए।
लेन देन की चाहतों में
त्याग समर्पण अब कहां
बने वक्त पर सब खड़े
बुरे वक्त पर कहो कौन
कहां।
एक सीधी राह भी
अगले मोड़ पर मुड़
जाती है।
अपनी अपनी राह चाह में
खुद को भी ना पूछतीं हैं।
हर नुक्कड़ हर मोड़ पर
खुद को बदलती रहती हैं।
हैं ये जीवन की राहें
ये कहो कब कहां
सीधी चलतीं हैं ..
हैं ये जीवन की राहें
ये कहो कब कहां
सीधी चलतीं है...

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




