कुछ इस तरह जज़्बात हमारे
हम से रूठ गए
चमकीले मोती बने फिर
प्रवाहित कैसे हो गये ।।
सोच कर गर्भित ख़्याल उड़ते रहे
हमें छला ग़म नहीं
कसूर होगा कोई
पर मन को विचलीत क्यों कर गए ।।
आखिर लुप्त होना था गति की तरह
तो परेशान कर
साथ साथ क्यों चलें
अब स्मरण को समर्थन नहीं
फिर बार बार नमी आंखों को क्यों दे गए ।।