अनंत आकाश के नीचे मैं चलती हूँ,
जहाँ सत्य और भ्रम की सीमाएँ घुलती हैं।
हर पल जो बीतता है, हर साँस जो आती है,
एक अवसर है, जो फिर कभी लौट न पाती है।
पश्चाताप—एक छाया, जो पीछा करती है,
हर खोए क्षण की गूँज में सिसकती है।
पर क्या यह दर्द ही जीवन का सार नहीं,
जो हर गलती में छुपा है नया आधार कहीं?
मैं चाहती हूँ एक ऐसा जीवन,
जहाँ हर दर्द हो प्रेम का प्रमाण।
जहाँ हर आँसू, हर ठोकर, हर निशान,
बनें मेरे अस्तित्व का अमिट बयान।
मैं डर के सौदों में अपने सपने नहीं बेचूँगी,
जो सच भीतर जलते हैं, उन्हें चुप नहीं रखूँगी।
प्रेम जो मेरे हृदय में थरथराता है,
उसे व्यक्त करूँगी, चाहे सारा जग न समझ पाए।
जब मन कहे, “रुक जाओ, ये राह कठिन है,”
तब मैं चुनूँगी वो राह, जहाँ भय सघन है।
क्योंकि जीवन तो वही है जो हमें तोड़े,
और हर टूटन के बाद हमें और जोड़े।
जो पूर्णता के पीछे भागते हैं, भागने दो,
मैं अपूर्णता में अपनी पूर्ति खोजूँगी।
जहाँ खंडित सपने और बिखरे ख्वाब हैं,
वहीं मेरे जीने के असली जवाब हैं।
और जब अंतिम सन्नाटा मुझे अपने में समेटेगा,
जब समय मेरी परछाईं को भी मिटा देगा,
तब जो मुझसे प्रेम करते हैं, वो कहें:
“उसने जिया जैसे हर पल उसका आखिरी हो,
उसने प्रेम किया जैसे उसका कोई विकल्प न हो।”
इसलिए आज, मैं ये प्रतिज्ञा करती हूँ,
हर भय, हर पछतावे को प्रेम से हरती हूँ।
क्योंकि अंत में, जब रात सब पर छा जाएगी,
एक जीवन जो प्रेम से भरा हो, वही शाश्वत कहलाएगी।