एक चरित्र ऐसा हो
चरित्र ऐसा हो
जिसमें मन और मुख के समान भाव दिखें
न मन को मैला करें
न मुख को झूठा बनाएँ
चरित्र हो तो ऐसा हो
जो मन की सुन्दरता को ऐसे बढ़ाता जाए
जिसकी चमक मुख पर झलकने लगे
चरित्र ऐसा निर्मल हो
जहाँ खड़े हो जाएँ,वहीं सम्मान पाएँ
दो मुखोटे पहने इस दुनिया में व्यक्तित्व एक भाव नज़र आए
चरित्र ऐसा उज्ज्वल हो
जो अपने प्रकाश की ऊर्जा से दूसरों को प्रकाशित करे
हर भाव ,हर शब्द , हर वाक्य उसका सकारात्मक हो जाए..
वन्दना सूद