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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

गांव से ग्लोबल तक (स्वतंत्रता दिवस 2025 विशेष)

अभिषेक मिश्रा की कविता “गांव से ग्लोबल तक” में बंधी है भारत की अनोखी यात्रा

15 अगस्त 2025 के अवसर पर युवा कवि अभिषेक मिश्रा ने अपनी नई कविता “गांव से ग्लोबल तक” के ज़रिये देश के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज के आधुनिक भारत तक की प्रेरणादायक कहानी को शब्दों में पिरोया है। इस कविता में वे भारत के ग्रामीण जीवन की मिट्टी की खुशबू से लेकर विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में देश की उपलब्धियों तक, हर पहलू को भावुकता और ऊर्जा के साथ प्रस्तुत करते हैं।

अभिषेक की यह रचना केवल एक कविता नहीं, बल्कि एक ऐसे संदेश के रूप में सामने आई है जो आज के युवा पीढ़ी की सोच और भारत के प्रति उनकी गहरी लगन को दर्शाती है। यह कविता देशभक्ति के भाव को नई ऊर्जा देती है और हमें याद दिलाती है कि हमारी असली ताकत हमारे गांवों की मिट्टी, हमारे बहादुर सपूतों और मेहनती युवाओं में निहित है।

“गांव से ग्लोबल तक” में कवि ने इतिहास, संघर्ष, आधुनिकता और भविष्य की आशाओं को बड़ी सूझ-बूझ और मार्मिकता से समेटा है। यह रचना स्वतंत्रता दिवस के महत्व को नई दृष्टि से समझाने वाली एक काव्यात्मक धरोहर साबित हो रही है।

अभिषेक मिश्रा की लेखनी ने इस बार एक बार फिर यह साबित किया है कि भारतीय युवा देश के विकास और सांस्कृतिक समृद्धि के प्रति कितने सजग और जागरूक हैं।

# गांव से ग्लोबल तक
(स्वतंत्रता दिवस विशेष)

धान की खुशबू, मिट्टी की सौंधी,
पगडंडी का मीठा गान,
बरगद, पीपल, नीम की छाया,
झोंपड़ियों में सपनों का मान।

बैलगाड़ी की धीमी चाल में,
कच्चे आँगन का था सिंगार,
हाट-बाज़ार की चहल-पहल में,
गूँजते थे लोक-पुकार।

पर आई जब गुलामी की आँधी,
सूख गए खेतों के गुलाल,
माँ के आँचल में लहराते सपने,
टूट गए जैसे मिट्टी के लाल।

लाठी, गोली, कोड़े, जंजीरें,
रोटी आधी, भूख का गाँव,
फिर भी भारत–माँ के बेटों ने,
प्राण दिए, पर न झुकाया नाम।

चंपारण में उठी जो आंधी,
नमक सत्याग्रह ज्वाला बनी,
भगत, सुखदेव, आज़ाद की कुर्बानी,
जन-जन की मिसाल बनी।

सुभाष के नाद गगन में गूँजे,
"तुम मुझे ख़ून दो" का गीत,
वीर जवानों के रक्त से फिर,
लाल हुआ भारत का मीत।

15 अगस्त की भोर आई जब,
सूरज ने सोने रंग बिखेरा,
स्वतंत्र ध्वज नभ में लहराया,
पर सफ़र का था लंबा डेरा।

गरीबी, अशिक्षा, भूख, बीमारी,
अब भी थीं राह में काँटे,
पर गाँव के दृढ़ किसानों ने,
पसीने से सोना बिखराते।

हाथ में हल, आँखों में सपना,
गाँव ने मेहनत की मिसाल गढ़ी,
हरित–श्वेत क्रांति की बगिया से,
धरती की किस्मत बदल पड़ी।

शिक्षा की ज्योति जली जब,
ज्ञान की नदियाँ बह निकलीं,
तकनीक के पंख लगे तो,
भारत की ऊँचाइयाँ दिखीं।

आईटी, चंद्रयान, मंगल-यात्रा,
नभ के द्वार खुले यहाँ,
गाँव की मिट्टी का बेटा भी,
विश्व–विजेता बना जहाँ।

अब किसान का बेटा बनता,
वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर,
गाँव की बेटी खोल रही है,
विश्व मंच पर अपना दफ़्तर।

आज तिरंगे की छाँव तले,
हम खड़े हैं दृढ़ संकल्प लिए,
"गांव से ग्लोबल" की यात्रा में,
हर हिंदुस्तानी ने कदम दिए।

आओ इस आज़ादी पर्व पर,
प्रतिज्ञा हम सब फिर दोहराएँ,
गाँव की मिट्टी से जुड़े रहें हम,
पर दुनिया को भी अपनाएँ।

यह कविता “गांव से ग्लोबल तक” न केवल भारत की गौरवशाली यात्रा का दस्तावेज़ है, बल्कि देश के हर नागरिक के दिल में गर्व और आशा की लौ भी जलाती है। यह हमें याद दिलाती है कि हमारी ताकत और संस्कृति की जड़ें गहरे गाँव की मिट्टी में हैं। स्वतंत्रता दिवस के इस पावन अवसर पर प्रस्तुत यह रचना हमारे अतीत से जोड़ती है और उज्जवल भविष्य की ओर प्रेरित करती है।

# लेखक परिचय

अभिषेक मिश्रा, बलिया के छोटे से गाँव चकिया के युवा कवि और लेखक हैं, जो अपनी लेखनी में गाँव की मिट्टी की खुशबू और ग्रामीण जीवन के संघर्षों को बखूबी उकेरते हैं। उनकी कविताएँ ग्रामीण जीवन की सादगी और आधुनिक भारत के सपनों का सशक्त चित्र प्रस्तुत करती हैं। अभिषेक का उद्देश्य अपनी कलम से नई पीढ़ी को जागरूक करना और देश के प्रति प्रेम की भावना को प्रज्वलित करना है।




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

वाह! वाह! अतिसुंदर रचना 👌 🙏🙏🌹

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