रह गया गिनते, वो गुनाह मेरे,
फिर याद आए, वो गुनाह मेरे।
कुछ तो थीं मेरी भी नेकियाँ,
काम उसके आए, वो गुनाह मेरे।
किस ने सूली पर टाँगा मुझे,
कोई तो बताए, वो गुनाह मेरे।
रात भर गिनता रहा फलक पर,
काली चादर में, वो गुनाह मेरे।
भूल गया वो अपने सारे ,
याद रहे उसे, वो गुनाह मेरे।
सुना है कुछ दोस्त थे मेरे, जो,
नहीं थे मेरे, ठहरे वो गुनाह मेरे
मिले थे दोस्त बन कर कभी मुझे
किसी और जन्म के, वो गुनाह मेरे ।
न धो सका गंगाजल, न चश्मा ज़मज़म ,
काले दाग दामन के, वो गुनाह मेरे ।
ठहरे तेरे दोस्त, हमदर्द सारे,
और मेरे दोस्त, वो गुनाह मेरे।
मिली सज़ा मुझें, जिसकी अब तक,
किसे कहे, थे ही नहीँ, वो गुनाह मेरे।
किस की मोहब्बत , किस की दोस्ती,
सारे अफ़साने ठहरे , वो गुनाह मेरे।
तुझे आज लगा पता, मेरे गुनाहों का ,
किससे छुपे थे अबतक, वो गुनाह मेरे।