जो प्यार ख़्वाबों में मिलता है,
वो हक़ीक़त में क्यों मिलता नहीं।
जिसकी आरज़ू रही हमेशा,
वो बंधन क्यों बंधता नहीं।
नींदों में खुशियाॅं देते हो,
पर जागती आँखें तुम होते नहीं।
जुस्तजू बरसों से है तुम्हारी,
पर तुम हो के मिलते नहीं।
प्यार सपनों में जताते हो,
पर जो दर्द हक़ीक़त में है उसे मिटाते नहीं।
तुम्हारे भरोसे खड़ी हूँ इस संघर्ष भरी राह पे,
पर तुम हो कि हाथ बढ़ाते नहीं।
🖋️ रीना कुमारी प्रजापत 🖋️