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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

नारी की स्थिति

नारी की स्थितिः एक समाज, एक सोच, और एक संभावना
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आज के बदलते दौर में विज्ञान, तकनीक और शिक्षा ने जितनी तेज़ी से प्रगति की है, उतनी ही अपेक्षा थी कि सामाजिक सोच और मानवीय मूल्यों में भी समान स्तर पर परिपक्वता आएगी। लेकिन दुर्भाग्यवश, नारी की सामाजिक स्थिति को लेकर सोच अब भी कई मामलों में वहीं अटकी हुई है जहाँ सदियों पहले थी।
नारी, जो सृष्टि की रचयिता है, जिसको "माँ", "बहन", "पत्नी" और "बेटी" जैसे सम्मानित संबंधों से पहचाना जाता है -आज भी अपमानजनक शब्दों और गाली-गलौज की परंपरा में पहला लक्ष्य बनती है। झगड़ों के दौरान जब कोई नारी को संबोधित करते हु ए अपमानित भाषा का प्रयोग करता है, तो यह केवल भाषाई गिरावट नहीं, बल्कि मानसिकता के पतन का भी परिचायक है।
यह समझना आवश्यक है कि यह प्रवृत्ति केवल पुरुषों की मानसिकता का दोष नहीं है। यह उस समाजिक ढाँचे का परिणाम है जहाँ एक माँ को संतान के प्रारंभिक संस्कारों का केंद्र माना जाता है, किंतु उसे स्वयं पर्याप्त मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक समर्थन नहीं मिल पाता। माँ की गोद को यद िबचचे की पहली पाठशाला कहा गया हो, तो पाठशाला की गुणवत्ता सुनिश्चित करना पूर समाज का उत्तरदायित्व बनता है।
बच्चा एक कोरे काग़ज़ की तरह होता है- उस पर जो लिखा जाएगा, वही वह जीवन भर पढ़ेगा और दोहराएगा। यह लेखनी केवल माँ के हाथ म नहीं होती; इसमें पिता की सोच, शिक्षक का व्यवहार, परिवार की संस्कृति और समाज के वातावरण की भी समान भूमिका होती है।
फिर क्यों हम हर बार नैतिक पतन का उत्तरदायित्व केवल नारी पर डाल देते हैं? यह एक प्रकार की मानसिक पलायनवादिता है - जब हम अपने कर तव्यों से बचना चाहते है तो दोषारोपण सबसे आसान उपाय बन जाता है।
यदि हमें सचमुच एक संवेदनशील, जागरूक और न्यायसंगत समाज का निर्माण करना है, तो हमें सबसे पहले नारी को संपूर्ण सुरक्षा, सम्मान और आत्मनिर्भरता प्रदान करनी होगी।
एक भयमुक्त, संतुष्ट और सशक्त नारी ही एक अच्छी माँ बन सकती है - और वही मा अपने बच्चों को नैतिकता, सहष्णुता और न्याय के मूल्यों के साथ बड़ा कर सकती है।
नारी के व्यक्तित्व में पहले से ही संवेदनशीलता, सहनशीलता, त्याग और समर्पण के गुण प्रकृति द्वारा अंतर्निहित होते हैं। ज़रूरत है केवल उन्हें भय, उपेक्षा और असम्मान के बोझ से मुक्त करने की। जब एक नारी निश्चिंत और आदरपूर्ण वातावरण में जीवन जीती है, तभी वह अपने बच्चों में वह दृष्टिकोण विकसित कर सकती है जो एक बेहतर समाज की नीव बनता है।
दरअसल, नारी समाज रूपी इमारत की मौलिक नींव होती है। जिस दिन हम यह स्वीकार कर लेंगे कि नींव को कमज़ोर रख कर कोई इमारत स्थायी नहीं बन सकती, उसी दिन हम सच्चे समाज सुधारक बन जाएंगे।
इस परिवर्तन के लिए केवल नारियाँ नहीं, हर वर्ग, हर व्यक्ति, हर सोच ज़िम्मेदार है और जब यह सामूहिक चेतना जागृत होगी, तब नारी भी सशक्त होगी और समाज भी।
जिस दिन हम अपने बच्चों को यह सिखा पाएँगे कि किसी भी गाली में नारी के अस्तित्व को अपमानित करना शर्म की बात है, उस दिन हम एक नये युग की ओर कदम बढ़ा लेंगे - जहाँ नारी केवल एक रिश्ता नहीं, एक गरीमा होगी।
डाॅ फ़ौज़िया नसीम शाद




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