कुछ घाव भरते ही नही, हवा मिलते ही दर्द देते।
सुकून की आशाएं नही, तन्हाई को सर्द करते।।
सम्हालना पड़ता 'उपदेश', दगाबाज अपनों से।
जिस्म को खाक होने तक, छोड़ते नही दर्द देते।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद
New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
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जिस्म को खाक होने तक, छोड़ते नही दर्द देते।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद