ये कैसे हैं विद्वान,
जिनका कोई नहीं ईमान।
अंकी इंकी डंकी लाल,
कर रहे हैं चोरी।
उलट फेर करके,
कर रहे हैं सीना जोरी।
फेंक रहा है ,
इधर उधर की।
एक नया बक्सा रोज भरते हैं,
उसमें झूठ के पुलिंदे ठूंस ठूंस कर रखते हैं।
घड़ा भर गया है पाप का,
अब याद आ रहा है गर्दन के माप का।
दिख रहा है जहर सांप का।
जब पत्र पर पत्र आ रहा है जांच का।
अब खेल रहे हैं खेल इसने किया उसने किया।
मैंने तो बस हस्ताक्षर किया।