क्या है जीवन की परिभाषा
यह तो है संघर्षों की भाषा
कहीं आशा तो कहीं निराशा
संघर्षों की इस भीड़ में और
निराशा की खाई में
नहीं किसी को रुक जाना
बस है चलते जाना
थाम दामन आशा का
जाना है इसके पार
तब ही दे पायेंगे हम
जीवन को नयी पहचान
#✍️अर्पिता पांडेय