एहसास – इंसानियत की सबसे खूबसूरत पहचान"
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एहसास, एक ऐसा प्यारा लफ़्ज़ है, जिसे सुनते ही हमारे दिल के नर्म कोने जाग उठते हैं। यही वो एहसास होते हैं जो हमें इंसान होने का मर्तबा अता करते हैं। कहा भी गया है— "जिसमें एहसास नहीं, वो इंसान नहीं।"
और यह बात बिल्कुल सही है।
एहसास ही वो ताक़त है, जो हमें दूसरों के दर्द से जोड़ती है। जब किसी और को तकलीफ़ होती है, तो हम भी बेचैन हो उठते हैं। किसी की खुशी से दिल ख़ुश होता है, और किसी की आंखों का आँसू हमारे दिल को भी भीगो जाता है। दरअसल, इंसानियत की असली पहचान यही है — दूसरे के दुःख और सुख को अपने दिल से महसूस करना।
आज के दौर में, जब स्वार्थ, जाति, मज़हब और राजनीतिक सोच ने इंसानी दिलों को बाँट दिया है, तब एक इंसान का इंसान बने रहना ही सबसे बड़ा चमत्कार है। अगर हमारी मोहब्बत और हमदर्दी केवल अपनों के लिए है — जैसे हमारे धर्म, जाति या परिवार के लोग — तो फिर सोचिए कि हमारी इंसानियत कितनी सीमित है।
सच्चा इंसान वो है, जो हर इंसान के लिए नर्म दिल रखे, चाहे वो किसी भी देश, जाति, धर्म या आर्थिक वर्ग से क्यों न हो।
अगर हम एक अजनबी की मदद बेलौस कर पाते हैं, तो यक़ीन मानिए — हम इंसानियत की कसौटी पर खरे उतरते हैं।
असल में, एहसास केवल इंसानों तक सीमित नहीं है — यह तो बेज़ुबान जानवरों में भी देखा जा सकता है। फिर हम तो इंसान हैं, रब की सबसे खूबसूरत रचना।
हमें तो सबसे पहले एहसास करना चाहिए — दूसरे के दर्द का, भूख का, तकलीफ़ का।
लेकिन अफ़सोस, आज इस एहसास पर सियासत का ज़हर हावी है। लोग भूल गए हैं कि जिसने हमें बनाया है, उसकी सबसे अच्छी इबादत यही है कि हम उसकी बनाई हुई हर रचना से मोहब्बत करें।
अगर यह एक छोटी सी बात सब समझ जाएँ, तो शायद इंसान कभी इंसान से नफ़रत न करे।
🌿 एक छोटी सी कोशिश…
अगर आप किसी की मदद नहीं कर सकते,तो एक मुस्कुराहट ही दे दीजिए।
अगर दौलत नहीं, तो अच्छा व्यवहार ही बाँटिए।
इंसान हैं तो इंसानियत को महसूस कीजिए,और उसे जीने की कोशिश कीजिए।
यक़ीन मानिए — अगर दिल में सच्चे एहसास हों,तो ये दुनिया जन्नत से कम नहीं लगती। सिर्फ़ एक एहसास चाहिए… इंसानियत का।
डाॅ फ़ौज़िया नसीम शाद