पहलगाम की धरती रोई है l
एक एक आँसू अपनी कहानी कही है।
पहलगाम लेगा हर आँसूओं का बदला l
कहाँ है वो सपने रंगीन,
हर गली हो रहा है हत्या मे लिन l
इस बार पहलगाम की बारी थी l
पहलगाम क्यों हुआ लहू लुहीन
शांति की सपनो पर लगाना इल्ज़ाम था l
आतंकियों का पड़ काला साया को
कोई न देख पाया था l
शांति के सपनों में लगा एक और इल्ज़ाम है l
काफ़िला था श्रद्धा का, प्रेम का रंग मे सब लिन था l
कुछ लोगों में छुप दिखा आतंक का रंग था l
भोले नाथ के भक्त थे अपने यात्रा में मग्न,
नफ़रत ने फिर चढ़ा दिया इंसानियत पर अपना काला रंग
गूंजे नारों के बीच चलाई गई गोली है l
हिला गई रूह तक यात्रिकों की जहाँ टोली थी l
मासूमों के साथ पहलगाम मे खेली गई खून की होली है l
पहलगाम को किया गया लहू लुहान
बिन रंग के होली गद्दारों ने खेली है l
मगर याद रखो तुम गद्दारो
न टूटेगा हिम्मत, न टूटेगा विश्वास हमारा
न हार माने थे हम पहले , न अब हर मानेंगे l
शहीदों के चिता से उठी है जो आग ।
वो ज्वाला बन के निकलेंगे करेगा तेरा हिसाब
दहशत के अंधेरों को मिटा कर ,
एक दिन फिर पहलगाम में खुशियों का मेला आयेगा l
जो किया विश्वासघात हमारे साथ उन गद्दारों को मौत का घाट चढ़ाएंगे l
लेखक
शिवम् जी सहाय