मेरे साथ कोई नहीं इस दुनियां में,
अकेली मैं रह गई हूॅं,
अब तो अपनी परछाई से भी डरने लगी हूॅं।
तन्हा थी लेकिन खुश थी,
कोई नहीं पर अपनी परछाई तो मेरे संग है,
पर अब ये भी बेवफ़ा बन गई,
धीरे-धीरे साथ जो छोड़ने लग गई।
पहले ये मेरी परछाई साथ हमेशा मेरे रहती थी,
अब तो जैसे ये भी दुनियां के जैसी बन गई।
साथ मेरा छोड़ मेरी परछाई
भाषा दुनियां की बोलने लगी है,
क्या करे बेचारी ये भी ?
कमबख़्त जो मेरा नसीब है।
अब डरने लगी है मेरी परछाई दुनियां से,
तभी तो छोड़ रही है साथ मेरा,
हार गई बेचारी लड़ते-लड़ते दुनियां से।
कब तक सहेगी बेचारी,अब ये भी दर्द को
हरायेगी दुनियां को तो कयामत ले आयेगी,
जो हारी खुद तो ख़त्म ये हो जायेगी।
~रीना कुमारी प्रजापत ✍️