सूरज अब शाम से बतियाने लगा है,
मुसाफिर थक के घर जाने लगा है l
हवा छत पर चुपके से उतरने लगी है,
कोई धीमें से गीत अब गाने लगा हैl
फलक पर चांद तारे अब जाने लगे हैं,
निशा के हुस्न का पहर ढलने लगा हैl
हमारे पास बस, तेरी यादों का साया,
लिपट कर मुझसे अब सोने लगा है l
अगम चुप हो खड़े कुछ कह रहे हैं ,
हमीं से दूर क्यों मनुज होने लगा है l
जो बातें कह नहीं पाया मैं उस दिन,
बर्फ सा सीने में अब जमने लगा हैl
तुम आओ पास बैठो कुछ कहो तो ,
देखो चांद भी बदली में जाने लगा हैl
ना जाने आज क्यों ये नम हैं आंखें ,
अभ्र में अक्स मां का दिखने लगा है l
सितारों से हमारी भले ही दूरियां हों,
टूट कर मुझसे वो क्या कहने लगा है l