पत्ते की तरह जब खत खड़बड़ाता।
सोचो जरा दिल कैसे न पढ पाता।।
इन्द्रधनुषी दिन हुआ शामें मनरंगी।
ख्याली मदहोशी में मन बड़बड़ाता।।
बहती नदी सा वक्त हुआ अतरंगी।
तितली के पंख सा तन फड़फड़ाता।।
पागल हवा ने फूंकी हो जैसे बाँसुरी।
निमंत्रण 'उपदेश' फिर कैसे ठुकराता।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद