"कवि का सफ़र, एक कविता"
मैं वहीं रहती हूँ,
जहाँ मेरे सपनों की आवाज़,
मेरी आँख खुलने के
बाद भी सुनाई देती है।
मेरे दिल की आवाज़ और सच्चाई के बीच,
एक दर्द-सा ठहरा रहता है मुझमें,
वही मेरी क़लम की रौशनी है।
कभी सपने मुझे लिखने को कहते हैं,
कभी सच मुझे चुप कर देता है।
मैं दोनों के बीच की डोर हूँ,
जिसे केवल लिखने वाला महसूस कर सकता है।
हर सुबह एक नई कविता जन्म लेती है, और हर रात कोई अधूरी पंक्ति सो जाती है।
कवि के जीवन में,
मुस्कुराहट भी दर्द से होकर आती है,
और हर आँसू एक नया शब्द बन जाता है। कुछ यादें कभी पूरी नहीं होतीं,
पर वही तो कविता का अर्थ है जो मिला नहीं,
वही लिखा गया,
और जो लिखा गया...
वही याद बन गया।
अब यादों को शब्दों में बुन रही हूँ,
हर एहसास को पंक्तियों में सुन रही हूँ। और जब मैं ख़ामोशी में ढल जाऊँ,
मेरे गीतों के साथ हवाओं में घुल जाऊँ।
तब मेरी कविताएँ रौशनी बन जाती है,
हर मन में उजाला कर जाती है,
किसी दिल के कोने में चुपकर रहती है, नया अर्थ पाकर मुस्कुरा मैं एक कवि हूँ,
हर पंक्ति में जीती हर पंक्ति में मिटती और हर बार जब कोई कविता जन्म लेती है,
मैं नया-सा हो जाती हूँ।
रचनाकार- पल्लवी श्रीवास्तव
ममरखा, अरेराज... पूर्वी चम्पारण (बिहार)