नीर के संग रंग, रंग घोल कर के संग
रंग दे तू आज रंगो के रंग मे
कान्हा के संग अपनी राधा को कर के तग
जीत ले ये जंग आज बड़ी ही उमंग में
दिल की तरंग आज जैस तप रहा हो अंग आज
क्या ही उमंग आज जैसा खड़ा हूं जंग में
जेसे बह रही पतंग संग नदियों के संग संग
बूँद बूँद रक्त उसका बह रहा हूँ मेरे अंग में
आया वक्त मिलन का तो मिल न सके जो हम
छोड़ कर चले गये हमको एक पल में
मिलन जो दोबारा हुआ दिल का जो मारा हुआ
देखते ही आंसुओं की बौछार संग हो गई
हम हार भी जीत गए वह जीत कर भी हार गए
जो रंग ना सके उसके रंगों के रंग में...
कवि - श्री शुभम रॉय जी