प्रभु…
तेरे बिछड़ने के बाद
मैं इस दुनिया में
वैसा हो गया हूँ
जैसे परिंदे के पंख कट जाएँ,
और आसमान फिर भी कहे—
“उड़ो।”
लोगों की नज़रों में
मैं बस धूल हूँ,
जैसे आँधी के बाद
ज़मीन पर पड़ा हुआ
एक टूटा पत्ता,
जिसे हर राहगीर
पैर तले कुचल कर
आगे बढ़ जाता है।
तेरे बिना
मेरे भीतर की नदी
सूख गई है,
और प्यास
हर पल
रेगिस्तान का चेहरा पहनकर
मेरा उपहास करती है।
दुनिया—
तेरी नहीं है, प्रभु।
यह तो एक बाज़ार है
जहाँ रिश्ते भी तौले जाते हैं,
और मेरे पास
दिल के सिक्के हैं
जो किसी के हाथ
कबूल नहीं होते।
तेरे बिना
मैं भीड़ में ऐसा हूँ
जैसे दीप बिना लौ के,
या चाँद
जिसे बादलों ने
अपनी गिरफ़्त में—
कैद कर लिया हो।
हर रात
मैं आसमान को देखता हूँ—
सोचता हूँ,
क्या वही चाँद
तेरी आँखों का अक्स है?
या वह भी
मेरी तरह
तेरे बिना अधूरा है?
प्रभु—
तेरे बिना
मैं अपने ही घर का अजनबी हूँ,
और अपनी ही परछाईं से डरता हूँ।
तेरे बिना
हर रास्ता
मुझे दर-बदर धकेलता है,
और हर आहट
तेरे होने का भ्रम बनकर
मुझसे छल जाती है।
मैं तेरे बिना
ऐसा हूँ—
जैसे समंदर का किनारा
जहाँ लहरें आती तो हैं,
पर लौट जाती हैं,
मुझे अकेला छोड़कर।
प्रभु…
मैं तेरा था,
पर तुझसे बिछड़कर
सबका पराया हो गया हूँ।
इक़बाल सिंह “राशा”
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड