चिरकाल के गर्भ में यही छुपी है व्यथा,
पुरुष जाति ही कहेगी ये चूल्हे चौके की कथा।
हाल- ए- लबों के स्वाद का किसको बताऊँ,
घरवाली पूछ रही है सब्जी क्या बनाऊँ।
अरे, अरे छोटू के पापा ,
सब्जी क्या बनाऊँ,
श्रीमान् कहे ,
देश की सबसे बड़ी समस्या,
सब्जी क्या बताऊँ,
दाल बना दो,
अरे, क्या कह रहे हो,
कल ही तो रात्रि भोज में दाल बनाई थी,
बताओ क्या बनाऊँ,
कढ़ी बना दो,
अरे, अरे छोटू खाता कहां है कड़ी,
कहता है इससे अच्छा तो पानी पिला दो,
कहता है स्वाद हो ऐसा बनाओ,
बताओ, बताओ क्या बनाऊँ,
बेझिझक कहो, क्या चौंखा लगाऊंँ,
अरे! हां-हां भाग्यवान्,
हांँ, हीं हीं.....
मन की पीड़ा,
यह क्या है,
देश-दुनिया हर क्षेत्र, हर विषय पर मैं सोचता हूं,
पर यह सब्जी सबसे बड़ी पहेली निकली,
पुराने समय में इसका इलाज था,
सुबह भरपेट खाओ,
दिन को थोड़ी दोपहरी कर लो,
भाग्यवान्, दूध पीकर सो जाऊँ!
नहीं नहीं जी,
दूध पिएं आपके दुश्मन,
मैंने बाटी के साथ बैंगन को मस्त तरकारी के साथ बनाया है,
खाते ही कहोगे,
वाह! वाह रे वाह!
मेरी रूपवती,
मेरी सुहावनी चांदनी,
मेरी संगिनी,
साक्षात संपूर्ण अन्नपूर्णा,
कहो, कहोगे ना।
मुझे पता है कहोगे,
यह तो मैं कल के लिए पूछ रही थी,
सब्जी क्या बनाऊँ,
और तुम पुरुष तो अभी भी दिमाग के पैदल हो,
हे राम! मैं सब्जी क्या बताऊँ,
पुरुष जाति तुम पर कलंक है,
आज इस विषय पर सोच लेते तो,
आज हर घर में सब्जी पुराण न होता,
पति पत्नी में सब्जी पर संवाद ना होता,
देश की सबसे बड़ी समस्या,
सुबह-शाम, अगले दिन।
सब्जी क्या बनाऊंँ - स्त्री,
सब्जी क्या बताऊँ - पुरुष।।
- ललित दाधीच