तुम जिसे ग़ुलाम बनाने चले थे,
वो अब अपनी रानी बन गई है।
तुमने जो भी ज़ंजीर पहनाई थी,
वो अब उसकी कहानी बन गई है।
जिस हँसी को तुमने पाप कहा था,
वो अब उसकी रवानी बन गई है।
जिस बदन पे हुक़्म तुम्हारा चलता था,
अब वो उसकी निशानी बन गई है।
तुमने जो भी तोड़ा था कभी नफ़रत से,
वो हर टूटन बग़ावती जुबानी बन गई है।
जिसे तुमने आँसू का नाम दिया था,
वो आग — अब जवानी बन गई है।
तुम जिसे समझे थे बेबस और ख़ामोश,
वो अब पूरी बयानी बन गई है।
तुम जिसे ‘कमज़ोर’ समझ हँसे थे,
वो अब तुम्हारी हैरानी बन गई है।
तुमने सोचा था वो टूटेगी,
उसने तय किया — वो राज करेगी।