अंजाम -ए -वफ़ा ये हुआ,
कि मेरा रोम -रोम ख़ाक हुआ।
सज़ा मिली मोहब्बत की ये,
कि बदनामी मेरा ताज हुआ।
अदाएं ऐसी दिखाती थी मानो वो भी हमसे
इश्क़ करती हो,
पर हम नादान सच को समझ ना पाए।
और आज भरी महफ़िल में उससे मोहब्बत का
इज़हार कर दिया,
फिर उस बेवफ़ा ने मुझे बर्बाद कर दिया।
नाज़नीन समझा था उसे मैंने अपनी,
पर वो दग़ा - बाज़ी कर गई।
छोड़ मुझे यूं वो,
खुद के ही साथ लापरवाही कर गई।
देख उसके कारनामे
दिल ये मेरा शादाब हुआ,
और खाकर उससे धोखा अब मैं
नायाब हुआ।
सज़ा मिली मोहब्बत की ये
कि बदनामी मेरा ताज हुआ।
(रीना कुमारी प्रजापत)