छेड़ चले जो राग, कब बदल गया साज।
दूर कहीं है अजान, उठ रही जो आवाज़।
माहौल गमगीन हुआ, तराने बदलते गए।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
गंगा जमनी तहजीब, बदल गई नदी राह।
किनारे पर नहा रहे, बहाव में बहते चले।
कुम्भ के महापर्व,लुटे-पिटे मजमा देखते।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
मिले राह में राहगीर, बने जो मन के मीत।
दिल से चाहा जिन्हें, लूटकर वे चल दिये।
वादे थे साथ निभाते, मंझधार छोड़ चले।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
आया था वो सावन, बहार थी आगोश में।
दिल बाग-बाग था, कायनात का साथ था।
सिर मुंडाए चली हवा, ओले जो पड़ते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
आता है ऐसा भी पल, लेते हैं जब फैसले।
चिराग से घर रोशन, चिराग जो थाम चले।
पलट गई किस्मत,चिराग से घर जला गए।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
वक्फ की चली हवा, उड़ा गई आशियाना।
दयार में रहे बेखबर, दबाने को उठा गुबार।
सर से छत खिसकी,खुले आसमा के नीचे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
ख्वाबों का था मेला,जगी थी एक उम्मीद।
आँखों में बसती थी,सितारों भरी वो रात।
सुबह हुई तो टूट गए, सपने बिखरते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
वक्त की साजिश थी, या इंसान का खेल।
सच दफनाया गया, झूठ का अजब खेल।
खामोश रह गए हम, सवाल सुलगते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
चाँदनी रातों में यहीं, बिछड़ गए है अपने।
यादों के सहारे बैठे,जीते जाते वही सपने।
सुबह की किरणों ने, आंसू ही सुखा दिए।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!