सफलता — केवल लक्ष्य नहीं, यह आत्मा की पुकार है,
विरामहीन प्रयत्नों में संचित एक अग्नि-संस्कार है।
यह पद नहीं जो चढ़ते ही, मिल जाए सहज सम्मान,
यह तो पथ है कंटकों से, जिसमें तपे अरमान।
निज स्वप्नों की शवशय्या पर, संकल्पों का श्राद्ध करो,
हर असफल झोंके में जाकर, नवदीप्ति का व्रत भरो।
निष्ठा की परिधि बाँधो जब, और श्रम बने शस्त्र,
तब बाधाएं भी झुक जाएं, बनकर पथ का पात्र।
परिश्रम की परछाइयों में, उजास स्वयं उग आता है,
और धैर्य जब दीप बने, पथ स्वर्णिम बन जाता है।
यह यात्रा है मौन साधना, न दिखावा, न शोर,
जहाँ स्वयं से युद्ध बड़ा है, ना कोई बाह्य भोर।
विपत्तियों के संग नाचे जो, हँसकर गहें क्लेश,
वही रचते हैं इतिहास में, अमर सफलता-लेख।
तो मत पूछो यह क्या है — यह जीने की शैली है,
सफलता वह अग्निपथ है जो अंतर को झेली है।
----अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'