नादान मन की मौज
डॉ. एच सी विपिन कुमार जैन" विख्यात"
नादान इंसान ही जीवन का आनंद लेता है,
छोटी-छोटी खुशियों में भी रस भर लेता है।
उलझनें नहीं, सरलता का भाव लिए जीता है,
हर पल को खुलकर, बेफिक्र होकर पीता है।
ज्यादा होशियार तो हमेशा उलझा हुआ ही रहता है,
हर बात में कारण और मतलब खोजता रहता है।
भविष्य की चिंता में वर्तमान को खो देता है,
समझदारी के बोझ तले, खुलकर हँसना भूल जाता है।
नादान हवा के झोंके सा, बहता चला जाता है,
जहाँ ले जाए राह, वहीं अपना घर बनाता है।
उसे नहीं फिक्र कल क्या होगा, कैसा होगा,
आज की मस्ती में ही वो तो मस्त मलंग सा होता है।
होशियार हिसाब-किताब में ही उलझा रहता है,
क्या खोया, क्या पाया, इसी में फँसा रहता है।
रिश्तों में भी गणित लगाता, तोल मोल करता है,
इसलिए शायद सच्चा सुख भी उससे दूर ही रहता है।
तो क्यों न थोड़ा नादान बनें हम भी कभी-कभी,
छोड़ दें ये होशियारी, ये समझदारी सभी।
जीवन की इस बहती धारा में खुलकर बहें जरा,
नादानी में ही शायद छिपा है जीने का असली मजा।