विकासवाद की दौड़ ने हिमालय निगला है।
विकासवाद सड़कों पर दौड़ में निकला है।
सभ्यता के शिखर पे,सवाल हिमालय नही।
जिसके मुहाने पे विकास की अंधी दौड़ है।
मानवता में समाजसेवा का तड़का लगा है।
हरएक समाजसेवा का चोला पहन चला है।
अर्थव्यवस्थाएं डूब गई ऋण के दलदल में।
हर देश भ्रष्ट नेताओं की चारागाह हुयी है।
निकल पड़े सब चार्वाक दर्शन की राह पर।
लोकतंत्र चढ़ पड़ा है पूंजीवाद की गोद पर।
जनमानस बंटा हुआ है अमीर या गरीब में।
और खाई यह बढ़ती जाती हद करके पार।
हर दिन सुनामी की दास्तान लिखी जा रही।
हर हिमालय जमींदोज़ था नजरो के सामने।
न रुका विकास का दौर कराहेगी मानवता।
लालच की आंधी में,विकास बहता जाएगा।
दौर यह भयंकर, मानवता का घातक होगा।
भूले समाज के दरिंदे,अमीर अमर न होगा।
विकास के कीड़े,इनका भविष्य क्या होगा।
गेंहू को खाकर घुन,वहीं पर तो शहीद होगा।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




